Natasha

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राजा की रानी

वैष्णवी ने आज मुझसे बार-बार शपथ करा ली कि उसका पूर्व विवरण सुनकर मैं घृणा नहीं करूँगा।


“सुनना मैं चाहता नहीं, पर अगर सुनूँ तो घृणा न

करूँगा।”

वैष्णवी ने सवाल किया, “पर क्यों नहीं करोगे? सुनकर औरत-मर्द सब ही तो घृणा करते हैं।”

“मैं नहीं जानता कि तुम क्या कहोगी, तो भी अन्दाज लगा सकता हूँ। यह जानता हूँ कि उसे सुनकर औरतें ही औरतों से सबसे ज्यादा घृणा करती हैं, और इसका कारण भी जानता हूँ, पर तुम्हें वह नहीं बताना चाहता। पुरुष भी करते हैं, किन्तु बहुत बार वह छल होता है, और बहुत बार आत्मवंचना। तुम जो कुछ कहोगी उससे भी बहुत ज्यादा भद्दी बातें मैंने खुद तुम लोगों के मुँह से सुनी हैं, और अपनी ऑंखों भी देखी हैं। पर तो भी मुझे घृणा नहीं होती।”

“क्यों नहीं होती?”

“शायद यह मेरा स्वभाव है। पर कल ही तो तुमसे कहा है कि इसकी जरूरत नहीं। सुनने के लिए मैं जरा भी उत्सुक नहीं। इसके अलावा कौन कहाँ का है, यह सब कहानी मुझसे नहीं भी कही तो क्या हर्ज है?”

वैष्णवी काफी देर तक चुप हो कुछ सोचती रही। इसके बाद अचानक पूछ बैठी, “अच्छा गुसाईं, तुम पूर्वजन्म और अगले जन्मपर विश्वास करते हो?”

“नहीं।”

“नहीं क्यों? क्या तुम सोचते हो कि ये सब बातें सचमुच नहीं हैं?”

“मेरे सोचने के लिए दूसरी बहुत बातें हैं, शायद ये सब सोचने के लिए मुझे समय ही नहीं मिलता।”

वैष्णवी फिर क्षणभर मौन रहकर बोली, “एक घटना तुम्हें बताऊँगी, विश्वास करोगे? ठाकुरजी की ओर मुँह करके कहती हूँ कि तुमसे झूठ नहीं कहूँगी।”

मैंने हँसकर कहा, “करूँगा।”

“तो कहती हूँ। एक दिन गौहर गुसाईं के मुँह से सुना कि उनकी पाठशाला का एक मित्र उनके घर आया है। सोचा कि जो आदमी एक दिन भी यहाँ आए बिना नहीं रह सकता, वह अपने बचपन के मित्र के साथ छह-सात दिन कैसे भूला रहा? फिर सोचा कि यह कैसा ब्राह्मण मित्र है जो अनायास ही मुसलमान के घर पड़ा रहा, किसी से भी नहीं डरा? उसका क्या कहीं भी कोई नहीं है? पूछने पर गौहर गुसाईं ने भी ठीक यही बात कही। कहा कि संसार में उसका अपना कहने लायक कोई नहीं है, इसीलिए उसे डर नहीं है, चिंता भी नहीं है। मन-ही-मन खयाल किया कि ऐसा ही होगा। पूछा, गुसाईं, तुम्हारे मित्र का क्या नाम है? नाम सुनकर जैसे चौंक गयी। जानते तो हो गुसाईं, यह नाम मुझे नहीं लेना चाहिए।”

हँसकर बोला, “जानता हूँ। तुम्हारे मुँह से ही सुना है।”

वैष्णवी ने कहा, “पूछा, तुम्हारा मित्र देखने में कैसा है? उम्र क्या है? गुसाईं ने जो कुछ कहा उसका कुछ हिस्सा तो कानों में गया, और कुछ नहीं। पर हृदय के भीतर धड़कन होने लगी। तुम खयाल करते होगे कि ऐसा आदमी तो नहीं देखा तो नाम सुनकर ही पागल हो जाए। पर यह सच है। सिर्फ नाम सुनकर ही औरतें पागल हो जाती हैं गुसाईं!”

“उसके बाद?”

वैष्णवी ने कहा, “उसके बाद खुद भी हँसने लगी पर भूल न सकी। सब काम-काजों में मुझे केवल एक ही बात याद आने लगी कि तुम कब आओगे, तुम्हें अपनी ऑंखों से कब देख सकूँगी।”

सुनकर चुप रहा, पर उसके चेहरे की ओर देखकर हँस न सका।

वैष्णवी ने कहा, “अभी तो कल शाम को ही तुम आये हो, पर आज इस संसार में मुझसे ज्यादा तुम्हें कोई प्रेम नहीं करता। पूर्वजन्म अगर सत्य न होता तो क्या एक दिन में यह असम्भव बात सम्भव हो सकती?”

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